Thursday, May 1, 2014
पत्रकारिता का जीवन
पत्रकारिता, दूर से एक रोमांचक सफर नजर आने वाली पत्रकारिता को यदि सच में समझना है तो इसमें घुसकर ही इसकी सच्चाई को समझा जा सकता है....छह महीने में ही अच्छी खासी बॉडी कमजोर हो गई... अजीबोगरीब शिफ्ट के टाइमिंग्स बॉडी क्लॉक को चैन नहीं लेने देते.... मजा बस एक ही चीज में है वो ये कि आप कुछ लिख पाते हैं...कुछ बोल पाते हैं...मगर इस दिल को सुकुन पहुंचाने की ये कीमत कुछ ज्यादा लगती है.... लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को करीब से देखना हर मास कॉम स्टूडेंट के लिए शुरुआत में ही जरूरी है... मैं ये नहीं कहता कि ये कैरियर फिजूल है मगर मैं ये जरूर कहता हूं कि दूर के ढोल सुहावने ही लगते हैं...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment