Saturday, September 25, 2010

ये कैसा रिश्ता..

मैं हैरान हूं। टीवी  के  एक रिएलटी शो में दिखाया गया कि किस तरह से एक लड़का दिल्ली के करोल बाग में एक लड़की से मिलता है और दोनों प्यार में  पड़ जाते हैं।  बाद में धोखेबाजी भी होती है। वैसे इस रिश्ते को प्यार जैसे पवित्र शब्द से नहीं नवाजना चाहिए। पर क्या कर सकते हैं। हवा ही कुछ ऐसी चल पड़ी है। वैसे समझ नहीं आता कि 5 मिनट में ऐसा क्या नजर आ जाता है कि साथ जीने-मरने की कसमें खाकर मिलना-जुलना शुरू कर देते हैं।
   बात कर रहा हूं उन दिनों जब मैं शहर के सिटी चैनल में बतौर एंकर काम करता था। वहां ऑडिशन के लिए एक कन्या का आगमन हुआ। ऑडिशन मैने ही लिया था।  मोबाइल  नम्बर उसने ले ही लिया था।  फोन करने भी शुरू कर दिए थे। हद तो तब हो गई जब हर वक्त उसी के फोन आने लगे। "आकाश आज मैं  किसी काम से मार्केट आई हुई  हूं,  आपकी याद आई तो फोन कर लिया।"  बस दिनों-दिन उसने तो इतने फोन किए कि मैं सोच में पड़ गया। फिर भी मैंने ध्यान न देते हुए इसे मात्र उसका बचपना समझते हुए कोई प्रतिक्रिया नहीं की। धीरे-धीरे दिन बीत गए। नया साल आ गया। नए साल का जश्न मनाने के लिए उस रात मैं अपने दोस्त के घर पर था। हम सब दोस्तों ने मिलकर खूब मस्ती की, नाच-गाना किया। उसी रात उसका फोन आया। मेरा बात करने का मूड नहीं था इसलिए दोस्त से बात करवा दी। थोड़ी ही देर में क्या देखता हूं कि दोस्त महाशय काफी देर से बातों में ही लगे हुए हैं।
मैं समझ गया कि बात आगे बढ़ती ही जा रही है। कुछ दिनों में उनकी बातें फोन पर लगातार होने लगी। पता चला कि बात शादी की भी हो रही है। मैने विभा से इस बारे में पूछा तो तो उसने साफ इन्कार कर दिया। कहने लगी कि मेरा उसके साथ कोई चक्कर नहीं है। मुझ पर गलत इल्जाम मत लगाओ, मुझे गुस्सा आता है। फिर तो मित्र ने ही फोन पर उसे आई लव यू कहते हुए सुनाया। कुछ महीनों बाद जब उनकी पहली मुलाकात हुई तो वो मुलाकात आखिरी मुलाकात में बदल गई। इस तरह किस्सा खत्म हुआ।

Sunday, September 19, 2010

बारिश ने धो दिया

आज सुबह मूसलाधार बारिश हो रही थी। काफी देर तक चलती रही। ऑफिस के लिए निकलते वक्त सोच रहा था कि छाता लगाकर  भीगने से बच जाऊंगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। असली मुसीबत तो यह थी कि सड़को पर जमा हुए पानी  से कैसे बचूं?  सड़क तो पार करनी ही होती है न। वहां से उड़कर तो जा नहीं सकता। नतीजा यह कि जूते और जुराब सब गीले हो गए। इस वक्त भी गीले मोजे डाल रखे हैं। जूते कुर्सी के नीचे हैं। मजबूरी है। ऑफिस में ना उतार सकता हूं ना ही बदल सकता हूं। दिल्ली का ऐसा हाल है कि कोई भी, कहीं भी धुल सकता है।

Saturday, September 18, 2010

हम भी आ गए

आकाश कुमार की तरफ से आपको नमस्कार।