Friday, May 30, 2014

क्यों डरते हैं मुसलमान ?

 दस साल पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था कि बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल कर लेगी...लेकिन  लोकसभा चुनाव-2014 में बीजेपी ने पहली बार एतिहासिक जीत हासिल की...हिंदुवादी कहे जाने वाले  नरेंद मोदी की सरकार से मुसलमान खौफ खाए बैठे हैं....सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों मोदी को भय के प्रतीक के तौर पर देखा जा रहा है....जिस देश में मुसलमान को राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति  बनने का गौरव मिला हो. जिस धरती पर उसने कला और विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की हो वहां ऐसी मिथ्या सोच नगण्य है...माहवाश बदर ने सही कहा  कि   'Jinnah made a Mistake and I am Ashamed of being a Pakistani'   ..... बदर के मुताबिक पाकिस्तान का मुसलमान विश्व में शक की नजर से देखा जाता है लेकिन एक भारतीय मुसलमान के साथ ऐसा नहीं है... 

मेरे ख्याल से  हमें गौर करना होगा कि हम कैसा मुल्क आने वाले वक्त में अपनी नस्लों को देकर जाएंगें..   काश हमारी सरजमीं हिंदुस्तान के हुक्मरान मुसलमानों को एक भारतीय मुसलमान होने का फायदा समझा पाएं....जो सुकून भारत में मुसलमान को मिलता है वैसा चैन एक हिंदू को पाकिस्तान में शायद कभी नहीं मिलेगा...


Wednesday, May 14, 2014

विचार... ईमानदार नेता चाहिए भले ही खुद बेईमान हों...

   


                   हमारा  समाज एक अजीब सी बीमारी से ग्रस्त है...और इसी बीमारी के चलते सारी समस्याओं का जन्म हो रहा है...समाज के लोग अपना नेता तो ईमानदार चाहते हैं मगर खुद ईमानदारी दिखाने से गुरेज करते हैं...उनकी बेईमानी कई तरह की होती है....चाहे पड़ोसी के घर के आगे कचरा डालना हो या दूसरों के घरों की खबरें इकट्ठा करनी हो...सब तरफ किसी भी तरह से खुद के फायदे और मजे पर ही ध्यान होता है...किसी मदद को हाथ ही नहीं उठते...अगर कोई तरक्की करे तो जलन से नींद ही आनी बंद हो जाती है...कहीं भी अपने दिल की बात सांझा करने में कोताही बरतते हैं और दूसरे के बारे में सब कुछ जान लेना चाहते हैं....   वहीं जब बात इलाके के नेता की हो तो उम्मीद की जाती है कि वो अपना हर काम सही तरीके से करे...सरकारी ग्रांट का पूरा इस्तेमाल सही तरीके से करे...सवाल ये है कि अगर खुद ईमानदारी नहीं दिखा सकते तो ईमानदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं???

Monday, May 12, 2014

कहानी - अफसर बिटिया

                                

                                      हाथ में कुछ पैसे दबाए वो तेजी चल रही थी...पड़ोस की दुकान पर उसे कुछ खरीदना था...दुकान  पर जाकर जब दुकानदार ने पूछा क्या चाहिए तो उसने गु्स्से से पांच रुपए दिए और सब्जी की मांग ली...दुकानदार ने उसे अजीब सी निगाहों से देखा...फिर उसे सब्जी पकड़ा दी...इधर-उधर देखे बिना रिम्पी ने सब्जी ली और घर की और तेजी से चल पड़ी...

                                        अठारह साल की रिम्पी के घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी...



जारी....

Sunday, May 11, 2014

ब्रेकिग न्यूज - नेताजी ने ये बोल दिया है

 

                                  सोलहवें लोकसभा में बहुत कुछ देखने को मिल रहा है...इस बार सभी पार्टियां पूरा जोर लगा रही हैं....अभिनेताओं को काफी संख्या में मैदान में उतारा गया है...रैलियों का दौर लगातार जारी है...मगर एक अजीब बात ये है  कि इन चुनावों में बयानों को कुछ ज्यादा ही तवज्जों दी जा रही है...चाहे वो राहुल गांधी हो या नरेंद्र मोदी या फिर मायवती....तमाम नेताओं के बयानों को मीडिया इतनी शिद्दत से दिखा रहा है जैसे अगर ये छूट गया तो पूरा खेल ही हाथ से निकल जाएगा...

                               क्या नेताओं के ऐसे बयान जिनसे किसी की भला ना होने वाला हो सच में इतना महत्व रखते हैं कि पूरा प्राइम टाइम ही घेर लें....और पूरा दिन चैनल्स उन्हें दिखाने को ही बेमिसाल पत्रकारिता मान ले....भले ही नेता कितना ही बड़ा क्यों ना हो...जरूरत ऐसी खबर पर ध्यान लगाने की है जो विकास को बढ़ावा देती नजर आए...वैसे भी नेता का काम है  विकास करना...आम आदमी को सुकून पहुंचाना...जो  ऐसी खबरों से नहीं मिलता...

Friday, May 9, 2014

लघुकथा - आसान नहीं है

                                                 


                                            
    
                                                    ' अरे आसान नहीं है..तू क्या सोचता है...पराए शहर जाकर तू बड़ा आदमी बन जाएगा...अरे तेरी जेब कट जाएगी वहां...वहां जीना आसान नहीं है...चुपचाप पढ़ ले और रोटी खा ले "...पिता के मुंह से इतना सब सुनकर गगन सहम गया..उसने तो सोचा था कि वो पढ़ने-लिखने बड़े शहर जाएगा और अच्छी नौकरी करेगा..मगर पिता की ऐसी बातों ने उसका हौसला ही तोड़ दिया था... 

                     बड़े शहर जाकर पढ़ने की तमन्ना ने गगन की नींदे उड़ा दी थीं। कुछ बड़ा करने की कसक ने उसका चैन छीन लिया था। मगर पिता की हर रोज की हौसला तोड़ने की बातों ने उसको पागल कर दिया था। वो ये सोचने लगा था कि क्या लक्ष्य पाने के लिए मेहनत करना और बड़े सपने देखना गुनाह है। गगन का पूरा बचपन इन्ही डर भरी बातें सुनने में बीत गया। दोस्तों के साथ खुशमिजाजी से जीना वो नहीं जानता था। हर काम, यहां तक कि खुशी से हंसना-हंसाना वो सीख ही नहीं पाया। 

कई सालों तक पिता को हर काम में तनाव में आते देखकर उसको ये लगने लगा था कि तनाव ही जीवन का जरूरी हिस्सा है। वो सोचता था कि यदि कुछ भी करना है तो तनाव लेना और देना ही होगा।  कई सालों तक वो इसी सोच के साथ जीया। 

किसी तरह उसने अपने शहर में ही रहकर पढ़ाई पूरी की। आखिरकार उसे मौका मिला देश की राजधानी में ट्रेनिंग करने का। डरते -डरते उसने अपना कदम पराए शहर की जमीन पर रखा। पिता की सीख उसे याद थी कि बड़े शहर में सब ठग हैं। कोई भी अच्छा नहीं मिलेगा। 

ऑफिस में पहुंचकर उसकी मुलाकात कुछ सीनियर्स से हुई। मगर एक बात ने उसे हैरान किया। यहां सब सीनियर उसकी मदद करते थे। उसे काम सिखाते थे। बड़े शहर का पहला सफर उसके लिए आसान साबित हुआ था। उसने भगवान को धन्यवाद दिया कि उसे ऐसे सीनियर मिले। पिता की नसीहत गलत साबित हुई थी। वो कहते हैं ना कि भटके तो वो हैं जो घर से निकले नहीं।  

Thursday, May 1, 2014

पत्रकारिता का जीवन

पत्रकारिता, दूर से एक रोमांचक सफर नजर आने वाली पत्रकारिता को यदि सच में समझना है तो इसमें घुसकर ही इसकी सच्चाई को समझा जा सकता है....छह महीने में ही अच्छी खासी बॉडी कमजोर हो गई... अजीबोगरीब शिफ्ट के टाइमिंग्स बॉडी क्लॉक को चैन नहीं लेने देते.... मजा बस एक ही चीज में है वो ये कि आप कुछ लिख पाते हैं...कुछ बोल पाते हैं...मगर इस दिल को सुकुन पहुंचाने की ये कीमत कुछ ज्यादा लगती है.... लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को करीब से देखना हर मास कॉम स्टूडेंट के लिए शुरुआत में ही जरूरी है...  मैं ये नहीं कहता कि ये कैरियर फिजूल है मगर मैं ये जरूर कहता हूं कि दूर के ढोल सुहावने ही लगते हैं...