क्यूं दिल की बात लबों पर आकर ठहर जाती है
कयूं दिल की आवाज़ मुझे हिलाती है
हर पल उसकी याद साथ होती है
फिर क्यूं भरी महफिल में अकेला कर जाती है
मन में उसी की नाम गूंजता है
दिल उसी के लिए धड़कता है
क्या उसे भी पता चलता है
जानता हूं वो सब समझती है फिर क्यूं वो अनजान दिखाई देती है
यही बात खटकती है
क्यूं वो दूर-दूर रहती है
क्यूं उसकी मुस्कुराहट मेरे करीब नहीं होती है
क्या उसके भी दिल की धड़कन मेरी आवाज से तेज होती है
अगर ये सब सच है तो क्यूं वो अपने कदमों को रोकती है..
Thursday, October 14, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment